बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-1 संस्कृत बीए सेमेस्टर-1 संस्कृतसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 संस्कृत
प्रश्न- महाकवि भवभूति का परिचय लिखिए।
उत्तर-
महाकवि भवभूति में अगाध पाण्डित्य एवं असाधारण प्रतिभा का दर्शन प्राप्त होता है। उसका लेखनी अत्यन्त सशक्त एवं प्रौढ है। उनकी इन समस्त विशेषताओं से प्रभावित होकर किसी समालोचक ने ठीक ही लिखा है।
'कवयः कालिदासाद्याः भवयूतिर्महाकविः।
महाकवि भवभूर्ति का जीवनकाल - महाकवि भवभूति ने अपनी रचनाओं में अपने सम्बन्ध में कुछ प्रकाश डाला है जिससे उनके वंशानुक्रम का किंचित ज्ञान प्राप्त हो जाता है। महाकवि भवभूति कालिदास की रचनाओं से बहुत ही प्रभावित है। महाकवि बाणभट्ट ने अपने हर्ष चरित के आदि में ही वासवदत्ता से तुबन्ध भास कालिदास आदि अन्य कई कवियों का भी उल्लेख किया है। लेकिन वहाँ किसी भी स्थान पर भवभूति का उल्लेख नहीं प्राप्त होता है। भवभूति बाण के पहले या उनके समय के होते तो बाण अपनी कृतियों उन्हे आदर्श कवियों की शैली में अवश्य रखते। बल्कि भवभूति में कही-कही श्राण के अनुकरण पर लिखा है।
महाकवि भवभूति की कृति मालतिमाधव के अंतिम अंकों में कादम्बरी का प्रभाव परिलक्षित होता है। बाण का जीवनकाल 6वीं शताब्दी का पूर्वार्द्ध माना गया है। कल्हण के मतानुसार महाकवि भवभूति कान्यकुब्ज के राजा यशोवर्मा के आश्रित कवि थे। कश्मीर नरेश ललितादित्य ने युद्ध में यशोवर्मा को पराजित किया था। श्रीशंकर पाण्डुरंग पंडित ने ललितादित्य के द्वारा यशोवर्मा पराजित किये गये थे याकोबी ने इस ग्रहण की तिथि 18 अगस्त सन 633 ई0 निर्धारित की है। इस प्रकार प्रो0 माकोबी की यह गणना यशोवर्मा के राज्य काल से सर्वथा मेल खाती है। गउडबहोट में 633 ई0 के लगभग मानते है। वाक्यपति राज्य ने अपनी रचनाओं में महाकवि भवभूति की काव्यगत विशेषताओं का बड़े सम्मान के साथ उल्लेख किया है जिससे यह विदित होता है कि वाक्यपतिराज महाकवि भवभूति से व्यक्तिगत रूप से परिचित एवं प्रभावित है।
इससे यह सिद्ध होता है कि 'गउडबाहो' के पूर्व भवभूति अपने नाटकों की रचना कर चुके थे। आचार्य वामन ने भी अपने काव्यलंकारसूत्र को भवभूति ने पद्यों का उल्लेख किया है जिनका समय वी शताब्दी का उत्तरार्द्ध है। धनन्जयम जिनका व्यास 10वीं शताब्दी है. अपने दशरूपक में भवभूति के तीनों नाटकों से अनेक उदाहरण लिए है।
आचार्य मम्मट ने भी अपने काव्य प्रकाश में भवभूति के पद्य दिये हैं। आचार्य मम्मट का समय 1120 ई0 के लगभग का है।
राजशेखर ने भी काव्य मीमांसा में मालती माधव के अनेक श्लोक प्रस्तुत किये हैं और अपनी बाल रामायण में स्वयं को वाल्मीकि भर्वमेन्ठ तथा भवभूति का अवतार बतलाया है।
राजशेखर का स्थितिकाल 6वीं शताब्दी के अन्तिम भाग में माना जाता है। राजशेखर कन्नौज के राजा महेन्द्रपाल के आचार्य थे। महेन्द्रपाल के कुछ अभिलेख 603 तथा 607 के प्राप्त हुए है। इसी आधार पर राजशेखर का उक्त समय निश्चित ही है अपने व्यक्ति विवेक नामक ग्रन्थ में आचार्य महिमभट्ट ने उत्तररामचरित के दो पद्य उद्धत किये हैं। क्षेमेन्द्र ने भी अपनी कृतियों में भवभूति की रचनाओं को सादर स्थान प्रदान किया है। इन दोनो आचार्यों का स्थितिकाल 11वीं शताब्दी का है।
इस प्रकार 8वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध से 11वीं शताब्दी तक और उसके बाद भी अनेक कवियों ने भवभूति का उल्लेख किया है। 6वीं शताब्दी के पूर्व भवभूति की कहीं चर्चा नहीं हुई है। इस प्रकार महाकवि भवभूति का स्थितिकाल 7वीं शताब्दी के अन्तिम भाग से लेकर 8वीं शताब्दी के मध्य भाग तक निश्चित होता है।
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- प्रश्न- श्री हर्ष की रचनाओं का परिचय दीजिए।
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- प्रश्न- महाकवि भवभूति का परिचय लिखिए।
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- प्रश्न- सन्धि किसे कहते हैं?
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- प्रश्न- हल सन्धि किसे कहते हैं?
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